Wednesday 20 August 2014

अब नाव नहीं ,बहता तिनका बना मेरा जीवन !

अब नाव नहीं ,बहता तिनका बना मेरा जीवन !

अब नाव नहीं ,
बहता तिनका बना
मेरा जीवन !

कभी जीवन नाव मेरी
समय की धारा पर बहती
शांत सौम्य !
नदी की कल -कल
के साथ
मन गीत गाता था निश्छल !

अब उमड़ती, उफनती,
मदमाती नदी में
बहता तिनका बना
मेरा जीवन !

धाराएं बनी अनेक !
कौन धारा सागर मिलन को ,
कौन धारा सिमट जाएगी
जंगलों में,
ऊपर उड़ते हंस के साथ
बहते बहते !

कौन जाने !
किस धारा पर
बहता तिनका बना
मेरा जीवन !

अब नाव नहीं,
बहता तिनका बना
मेरा जीवन !

रामेशवर सिंह

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