तुम लौट आओ !
बिछोह की सूर्य अग्नि से
मेरे तपते मन मरुस्थल को
सावन ऋतू की झड़ी सी
तेरी मुस्कान ही अब पुलकाये !
तुम लौट आओ !
रामेश्वर सिंह
बिछोह की सूर्य अग्नि से
मेरे तपते मन मरुस्थल को
सावन ऋतू की झड़ी सी
तेरी मुस्कान ही अब पुलकाये !
तुम लौट आओ !
रामेश्वर सिंह
Sundar hardya se nikli hui sundar pangtiya.... Wah wah wah....
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